सेवा अर्थार्थ किसी गरीब को कुछ देना निस्वार्थ भाव से। अपने पास जो भी है उससे किसी गरीब को मदत करना।
कोई भी तरीका से सवा, वो इस तीन प्रकार की सेवा में अजाती है।
- तन से सेवा
- मन से सेवा
- धन से सेवा
धन की सेवा के बारे में तो हम सब जानते हैं। इसलिए आज हम तन और मन की सेवा के बारे में चर्चा करेंगे।
- तन से सेवा : जब हम अपने अंदर पवित्रता, दया, प्रेम, भावना रखकर तथा निस्वार्थ भाव से सबका सहयोग करते हैं उनको किसी भी कार्य करने में स्थाई मदद देते हैं। तो उस एक समय में ही हम अपनी और दूसरों की सेवा कर रहे होते हैं।
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आदमी मदत करते हुए |
- मन से सेवा: जब हम सबको क्षमा करते हुए और सबसे सच्चे मन से क्षमा मांगते हुए सबको अच्छे जीवन के लिए शुभकामना शुभ भावना देते हैं । तब भी हम अपनी और दूसरों की सेवा कर रहे होते है।
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सकारात्मक thoughts सोचते हुए |
तो आज से ही हम सारा दिन सेवा से अपने भाग्य बनाने का अभ्यास करेंगे उसके लिए:
आज जो भी हमारे संबंध संपर्क में आएगा हम उसकी तन और मन से सेवा करेंगे
तन से सहयोग अर्थात
- किसी स्थाई कार्य में मदद करके
- कटु वचन छोड़ मीठे बोल बोल कर
और मन से शुभकामना अर्थात कैसी भी संस्कार वाली आत्मा हो हम उसे अच्छे और सुंदर संस्कारों की दुआएं देते जाएंगे।
आज का स्वमान है:
मैं विश्व की महान सेवा धारी आत्मा हूं
मैं परम पवित्र आत्मा हूं
ओम शांति जी